Saturday, 28 July 2012

...छंटनी...

...छंटनी...



अभी अभी दफ्तर पहुंचे हैं

माहौल में कुछ गर्मी सी है

ताकते हुए एक दुसरे को हम सब

किसी जवाब की तलाश में हैं

तभी एक काबिल दोस्त की गैरमौजूदगी ने

शायद समझा दिया सभी को


पिछले महीने की छंटनी के नतीजे आये हैं आज!






...सचिन्द्र कुमार

Saturday, 14 July 2012

....मैं और मेरा स्कूटर...

मैं और मेरा स्कूटर
चालीस की रफ़्तार पर
निकल पड़े हैं कैमरा लिए
गीली सी सड़क पर

कभी मैं इसको कहीं ले जाता,
कभी ये हेंडल मुझे नचाता
तस्वीरो को लेने रुकते हम
हर राह नयी... हर नयी डगर..

मानसून भी आसमान से
कह रहा देखो साथ हूँ मैं भी .
बरसात लिए चला  जो संग वो
रंगीन हो गया और  सफ़र..

मैं और मेरा स्कूटर
चालीस की रफ़्तार पर
निकल पड़े हैं कैमरा लिए
गीली सी सड़क पर

...सचिन्द्र कुमार...

Thursday, 5 July 2012

तेरे जाने पर - भाग ४

पहले पढ़े : तेरे जाने पर- भाग 3

लौट रहा था मिलकर तुमसे..
शायद तुमने ही बोला होगा,
इसलिए .. रास्तो ने छेड़ी है..
फिर से कब आने वाली बात..

एक ख्वाब लिए निकला था*
एक ख्वाब लिए हूँ वापस आया,
अच्छा है..या यार बुरा है..
समझ अभी तक नहीं हूँ पाया
हमने ना जाने कितनी बार, ये देखा है हर रात,

हर बार मेरे हाथो में..है आया तेरा हाथ,
हर बार है छूटा मेरे..हाथो से तेरा हाथ.

...सचिन्द्र कुमार

Sunday, 1 July 2012

तेरे जाने पर- भाग 3


पिछली पोस्ट :- तेरे जाने पर - भाग 2    




एक सुकून की लहर सी है
उम्मीद है जो सोचा है... वैसा ही हो..

पूरे सप्ताह था हमें इंतज़ार ..
मिलना जो तय था अब के शुक्रवार..

हमने दुआएं मांगी है की कुछ ऐसा हो..
अब के जो हो तो.. ना मिलना पल दो पल का हो ..

एक ख्वाब लिए चलता हूँ उस तरफ, के मिलने के बाद..

जो हाल कल तक इधर था ..
वो हाल कल से उधर हो..

सचिन्द्र कुमार..

Thursday, 21 June 2012

तेरे जाने पर-भाग २

*पिछली पोस्ट -तेरे जाने पर



हमने संग हैं जो पल काटे..
आ रहे याद अब, किस से बांटे |
हर तरह से तेरी याद आती है.
तू रूठती है कैसे ... तू कैसे शर्माती है... .
अब बतलाओ दिल के फ्रेम के लिए,
इनमे से किस तस्वीर को छांटे |

तुझे गए कई रोज़ बीते,
पूछो हमसे ये कैसे बीते..
हमने नाखून बढ़ाये हैं
तू आजाये और हमको डांटे

हमने संग हैं जो पल काटे..
आ रहे याद अब, किस से बांटे |

... सचिन्द्र कुमार.

Friday, 15 June 2012

तेरे जाने पर...

तेरे जाने पर...

शाम को जब दरवाज़े पर,
दफ्तर से आकर दस्तक दी..
कोई हलचल ना महसूस हुई
आहट ना दी कोई सुनाई..

थका हुआ सर झुका जो नीचे
कुण्डी पर लटका था ताला..
फिर से ये अहसास हुआ की,
अब से शाम ना होगी बेहतर,
कैसा लगेगा ये सोचा,
अब जब तुम ना होगी घर पर..

सच बोलू तो तेरी याद,
एक दफ्फ़ा और भी हमको आई..
जब अन्दर आने पर हमने
खुद ही शाम की चाय बनाई..

शाम को जब दरवाज़े पर,
दफ्तर से आकर दस्तक दी..
कोई हलचल ना महसूस हुई
आहट ना दी कोई सुनाई

.....सचिन्द्र कुमार .......

Thursday, 7 June 2012

..........नयी सड़क........
चलते चलते राह पर,
पैरो में बोझ सा महसूस हुआ..
रुक कर देखा तो, नयी सड़क का तारकोल चिपक गया था जूतों पर.
सूखे हुए हुए पेड़ एक डाली तोड़ ली हमने निजात पाने के लिए,
सोचा कभी फुर्सत से बैठ कर हटा लेंगे..

आज जाने कितने रोज़ बीते..
आज भी मेहनत की डाली से वक़्त को घिस रहे हैं..
पर ये राह आसान होती नज़र नहीं आ रही है...
...
इस नयी सड़क का भारीपन अभी भी बरक़रार है..
सचिन्द्र कुमार..