Thursday 6 October 2011

दिल सपने तेरे बुनता है..

एक ग़ज़ल..


दिल सपने तेरे बुनता है..आखिर इसका हक बनता है..
पास नहीं है तू फिर भी ये..तेरी आवाज़े सुनता है..
दिल सपने तेरे बुनता है..आखिर इसका हक बनता है..

लोग तो और भी, पास हैं मेरे..साथ है हस्ते, साथ हैं चलते...
लेकिन तेरी बात अलग है,,लेकिन तेरी बात अलग है
औरो को ये..कहाँ चुनता है..
दिल सपने तेरे बुनता है..आखिर इसका हक बनता है..

माना ये दुनिया बड़ी हंसी है..यारो की भी कमी नहीं है..
पर फिर भी इस चकाचौंध में..पर फिर भी इस चकाचौंध में..
मेरा भला कब..मन रमता है..
दिल सपने तेरे बुनता है..आखिर इसका हक बनता है..

कौन यहाँ जो रोके मुझको..कोई नहीं जो टोके मुझको..
तुम भी मना मुझे कर नहीं सकते..तुम भी मना मुझे कर नहीं सकते..
समझाया ना..हक बनता है ...
दिल सपने तेरे बुनता है..आखिर इसका हक बनता है..
......आखिर इसका हक बनता है..

...सचिन्द्र कुमार..

Thursday 29 September 2011

आज अगर वो कुछ लिखते..

आज अगर वो कुछ लिखते..मेरे बारे में क्या लिखते॥

कल तक सब कुछ अच्छा था..मेरा आना जाना था
आज जब हम लौटे हैं नहीं तो, ऐसे में वो क्या लिखते॥

आज अगर वो कुछ लिखते..मेरे बारे में क्या लिखते॥

वो तो मुझको समझे होंगे..खुद को भी समझाया होगा॥
मुझसे सवाल का मतलब ना था..पर, औरो को जवाब में क्या लिखते ॥

आज अगर वो कुछ लिखते..मेरे बारे में क्या लिखते॥

सचिन्द्र कुमार

Saturday 3 September 2011

तेरे होंठो से छूकर निकली..सुनी जो ग़ज़ल

मैं जरा सा बहक गया था..अभी गया हूँ संभल

शब् में भी आते हैं अब तो..ख्वाब अच्छे भले...

शब् में भी आते हैं अब तो..ख्वाब अच्छे भले..

सुकून सा भी मिलने लगा है दिल को आजकल..

मुझे एक गम था..उन दूरीयों का जो भी थी दरमियान

वो हंस दिए तो दायरा भी मेरा गया है बदल

मैं जरा सा बहक गया था..अभी गया हूँ संभल

उन्हें भी इश्क था हमसे बस एक हिचक सी थी..

जरा यकीन सा हुआ उनको तो... डर गया था निकल

तेरे होंठो से छूकर निकली..सुनी जो ग़ज़ल

मैं जरा सा बहक गया था..अभी गया हूँ संभल

सचिन्द्र कुमार

Friday 15 July 2011

मेरा दोस्त और उसके मास्टर जी

बारिश का मौसम , हरी हरी घास, सुन्दर सी शाम थी..
मैं अपनी सायकल पर रविवार के दिन B.H.E.L की तरफ अपने दोस्त मनीष के घर जा रहा था .
अपने घर से मनीष के घर तक का रास्ता भी हरिद्वार की काफी ख़ूबसूरती समेटे हुए था..
घर से निकलो और थोड़ी ही दूर पर गंगा मैया की जै हो जाती थी..उसके बाद गंगा मैया और मेरी सायकल साथ साथ पूरे ४-५ मिनट तो चलती ही थी..उसके बाद नये पुल पर एक लम्बी ढलान पर ये कोशिश रहती थी कि अब ये सायकल काफी दूर तक खुद-ब-खुद ही चलती रहे.
उसके बाद थोड़ी सी रानीपुर मोड़ के चौराहे की भीड़ और उसके बाद शुरू हो जाता है B.H.E.L की सीमा और एक अलग सी नगरी शुरू होती है..साफ़ , शांत सा जीवन लेकर चलने वाली जगह....इस रास्ते पर मैंने ११ साल बिताये हैं, पर जो आज हुआ वो अलग ही था...

कुछ ऐसा जो मैं और आप सपने में भी ना माने...मैं अगर आपको ये कहूं की ऐसा हुआ तो आप कहेंगे ..अच्छा सो जाओ अभी रात बाकी है, सुबह बात करेंगे.
ऐसा ही कुछ हुआ उस दिन...सेक्टर वन के चौराहे से पहले वाले मोड़ पर बायें हाथ पर सायकल मोड़ते ही मनीष का घर नज़र आता था..और वहाँ दूर से ही मुझे मनीष और मेरे कुछ दोस्त भी दिखे
मैंने सायकल के पैडल पर जोर लगाते हुए स्पीड बढा दी..और फटाफट पंहुचा वहां जहां सब खेल रहे थे..वहाँ मनीष,गौरव ताटके , गौरव कौशिक,आशीष ,रोहित सभी थे..
सभी मस्त खेल रहे थे...पार्क के एक तरफ कुछ बड़े लोग बात कर रहे थे... पर हमें कौन सा फर्क पड़ने वाला था...तभी अचानक एक अंकल ने हमारी गेंद पर लात मारी..
मैं और गौरव(ताटके) उसी तरफ दौड़े..अंकल मानो हमसे मजे लेने के मूड में थे..हमारी २ रूपये की गेंद पर लात पर लात मारे जा रहे थे ..मैं और गौरव भी ताव में आ गए और अंकल को मजा चखाने की ठान ली..हम लोगो का मैच लगभग २-३ मिनट चला और इतने में ही अंकल ने हमें चारो खाने चित्त कर दिया..और हम थक कर वापस दोस्तों के बीच मुँह छिपाते हुए आ गए...
मैंने हलके से गौरव के कंधे पर हाथ रखते हुए पुछा..क्या यार इतने गए गुज़रे हैं क्या हम..एक ५०-५५ की उम्र का बूढा हरा गया...
गौरव बोला ..छोड़ यार मुझे पता था हम हारने वाले हैं...तुझे पता है क्या हम किसके साथ खेल रहे थे...हारना तय था.. मैंने फिर से अंकल की तरफ देखा जो शायद खेलते वक़्त ध्यान नहीं गया..
वो हमारे देश की सबसे छोटी कार बनाने वाली कंपनी का सबसे बड़ा आदमी था.. जिनका नाम रतन टाटा है..और मैं उन्हें देख कर दंग रहा गया...मैं थोड़ी देर इस बात को विश्वास के साथ गले से उतार ही रहा था कि अचानक गौरव ने एक और bouncer दिया खोपड़ी पर, वो बोला, "तुझे पता है की आज मैं जो कुछ भी पढता हूँ इन्ही की वजह से" मैं फिर से परेशान... ये क्या है..तो वो बोला हाँ यार ..बचपन में इनसे ट्यूशन पढने जाता था तो बहुत मारते थे..खाना भी नहीं खाने देते थे ..पापा को कहते थे आप भी इसे मारते रहा करो तो ही पढ़ेगा...और पिताजी इन्ही की बात मानकर मेरी पूजा कर दिया करते थे ..
पर आज काम रही है वो मार..वो बताये जा रहा था...और मैं सर खुजलाये जा रहा था...कि ये क्या बकवास कर रहा है.. थोड़ी देर बाद मैंने कहा छोड़ यार चल पानी पीते हैं थका दिया टाटा साहब ने ...मैंने टाटा जी को टाटा किया और पानी ढूँढने लगे..मुझे पानी नहीं मिला..बहुत जगह ढूँढा..गला सूखने लगा..हर नल में पानी बंद था...अचानक देखा बहुत पसीना आ रहा था..अँधेरा था चारो ओर.....सन्नाटा ..बांयी तरफ करवट ली पानी की बोतल उठाई, पानी पिया ..बुखार देखा ..१०२ था...हलकी सी हंसी आई.. सोचा ..ये क्या था...हलचल से मीनल की आँख खुली तो उसने पुछा...क्या हुआ.... मैंने कहा कुछ नहीं मैच हार गया टाटा साहब से...तो वो बोली...अच्छा, सो जाओ अभी रात बाकी है, सुबह बात करेंगे..

कैसा लगा आप लोगो ये २-३ मिनट का मैच..

Monday 3 January 2011

नववर्ष की शुभकामनाये

कोई बताये क्या लिखें,

क्या है नया जो हम कहें।

यूँ ही ना लिख दे कुछ बेमतलब,

आप कहेंगे हम क्यूँ सहें।

यूँ तो लिखने मैं चला था कुछ हँसते खेलते पल,

थोडा लिखा तो अफ़सोस हुआ की क्यूँ बीत गए वो प्यारे पल,

सब कुछ ही तो अच्छा था हमेशा की तरह दिल के कोने में,

गुलाटियां सी मारता हुआ एक मासूम सा बच्चा था

खुश था वो नये साल को लेकर।

उत्साहित था मन में आने वाले ख्यालों को लेकर,

फिर से एक शुरुआत सी थी,

पर डर भी था की क्या होगा कल।

वो चला फिर भी एक हौसले के साथ, जो होगा देखा जायेगा

गर मेहनत रंग लायी तो परिणाम भी अच्छा ही होगा,

गुंजाइश ना थी किसी गफलत की अब के बरस,

मुकम्मल जहां के लिए ये मासूम ना जाए तरस।

किस्मत थी अच्छी जो पूरा हुआ लक्ष्य,

अब अंदाजा लगा सकता हूँ आने वाले साल का,

कौतुहल तो इस बार भी वैसा ही है,

मन में ख्याल भी वैसा ही है,

और क्या क्या हो सकता है

मन में सवाल पहले जैसा ही है।

अगले बरस फिर बताइयेगा हम क्या कहे

कुछ नया फिर से जो हम कहे

यूँ ही ना लिख दे हम कुछ बेमतलब

और आप ये कहे की ...हम क्यूँ सहे

सचिन्द्र कुमार