Sunday 27 December 2009

जयपुर यात्रा मेरी जुबानी ...

जयपुर यात्रा

साल भर के लम्बे इंतज़ार के बाद अपनी श्रीमती जी की इच्छा कुछ हद तक पूरी करने की कोशिश मे हमने जयपुर जाने का प्रोग्राम बनाया। इस छोटी सी जयपुर यात्रा का वर्णन अपने शब्दों मे आप लोगो के लिए पेश कर रहा हूँ....

दिल्ली से जयपुर :

दिल्ली की कडाकेदार सर्दी की परवाह न कर हम ६ बजे घर से जयपुर के लिए रवाना हुए। निकट ही इफ्फको चौक जहां जयपुर के लिए बस मिलती है, वहां पर पहुँचते ही पता चला कि एक गलत राय के चलते हम लोग एक अच्छी बस मे नहीं जा सकते क्योकि उस का टिकट एडवांस मे कराना पड़ता है और वो हमारे पास था नहीं, तो इसका मतलब अब साधारण बस मे हमें सफ़र तय करना था वो भी मजेदार ठण्ड मे...ye तो शुक्र है कि जयपुर जाने के उत्साह के चलते मीनल ने कोई शिकायत नहीं की :)। आगे की यात्रा बिना किसी विघ्न के पूरी हुई और हम ठीक १ बजे जयपुर मे होटल मैं पहुँच चुके थे...

जयपुर भ्रमण पहला दिन:

१ बजे होटल पहुँचने के बाद अच्छे से फ्रेश होकर और पूरी जानकारी और प्लान के के तहत २ जगह देखने का प्रोग्राम बनाया। अल्बर्ट हॉल museum और चोखी ढाणी।अल्बर्ट हॉल बहुत पसंद आया ॥वाकई वो एक अच्छी शुरुआत थी...पता नहीं कितनी ही शताब्दियों पुरानी वस्तुओं का संग्रह था वहाँ... उसके बाद बाहर बैठने के लिए एक अच्छी सी जगह ...ये सब तकरीबन २ घंटे मे समाप्त हुआ, क्योंकि उसके बाद हॉल बंद होना था :( उसके बाद हमने प्रस्थान किया चौखी ढाणी की तरफ...जो की वहाँ से २०-२५ किमी था शायद... और हम वहाँ ६ बजे पहुँच गए थे... वहाँ पहुँचकर समूचे राजस्थान की पारंपरिक चीज़े देखने को मिली ...राजस्थान का कल्चर , खाना, नृत्य, खेल सभी कुछ देखने को मिला... बहुत दिनों बाद खाट पर बैठने की मिला मचान और वो सब जो मैंने अपने गाँव मे देखा है बचपन मे...वहाँ सारी चीज़े राजस्थानी ढंग से बनी हुई थी...बस एक चीज़ वहाँ राजस्थानी नहीं और शायद होनी भी नहीं चाहिए...वो थे " शौचालय " मैंने ऐसे ही मीनल से कहा भी देखो ये लोग हर चीज़ राजस्थानी होने का दावा नहीं कर सकते :) काफी देर घूमने के बाद वहाँ खाना खिलाया गया...जो कि शायद अभी तक सबसे अच्छे से परोसा गया खाना था...पूरे सम्मान के साथ...हमारो दिल्ली कि सेठानी (मीनल को वहां इसी नाम से पुकार रहे थे ) ने पूरे चाव से खाया खाना ...मुझे खाना पसंद तो बहुत आया पर मै उतनी अच्छी तरह से नहीं खा पाया...थोड़े से ही मे पेट भर गया... भोजन के थोड़े ही देर बाद करीब ८:३० बजे हम लोगो वापसी के लिए तैयार थे...पर बाहर जाकर ये देखा की अभी तो लोगो का आना शुरू हुआ था...करीब आधे किलोमीटर की लाइन थी गेट के बाहर.... जो कि बहुत विचित्र सा करने वाला दृश्य था...खैर हम अपना दिन समाप्त करते हुए होटल की तरफ रवाना हुए और ९:३० वापस होटल पहुँच गए....

पहले दिन के फोटो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे.... http://picasaweb.google.com/parashar.sachin/JaipurTripDay1?feat=directlink

जयपुर भ्रमण दूसरा दिन:

दूसरे दिन कि शुरुआत सुबह ९ बजे से हुई...पहला पड़ाव था "आमेर का महल " जिसको देखते ही मुख से एक शब्द निकला "अदभुद" इतना विशाल इतना सुन्दर महल था वो...खूब तस्वीरे निकली, बेहतरीन नक्काशी वहाँ कि विशेषता थी...एक चीज़ जो वहां जाकर महसूस हुई मुझे मानो मैं किसी और देश मे आया हुआ हूँ॥क्योंकि वहां विदेशी पर्यटक हम लोगो से कहीं ज्यादा थे...उस ज़माने कि कलाकारी का बेहतरीन नमूना "आमेर पलेस"। वैसे आमेर का किला देखने से पहले हमने "मून स्टोन" नाम के एक होटल मे नाश्ता किया जहां पर प्याज कि कचोरी कढी के साथ मिली जो शायद वहां के जायके और खाने का एक और ढंग था पर था बहुत अच्छा... मजेदार उसके बाद हमने काफी जगह देखी जैसे "city palace", Jal Mahal, Hawa Mahal, Jantar mantar govind ji ka Mandir, Jaipur ki Raj Mata "Gaytri devi ka Market" aur bhi bahut kuch....जिनका विस्तार से वर्णन किया तो आप लोग शायद बोरे हो जाए पढ़ते पढ़ते, संक्षिप्त मे यात्रा का समापन कर रहा हूँ... जयपुर से दिल्ली:

५ बजे तक सब जगह घूमने के बाद हम मीनल कि स्कूल कि मित्र से मिले और फिर एक मौल मे थोडा "timepass " करके ७:३० वाली गाड़ी से वापसी के लिए रवाना हो गए॥ (अब कि बार मैंने जयपुर पहुँचते ही वापसी के लिए टिकट ले लिए थे तो वापसी कि यात्रा काफी सुखद रही और रात १ बजे हम लोग अपने घर वापस आ चुए थे...

दूसरे दिन के फोटो देखने के लिए यहाँ क्लिक करे : http://picasaweb.google.com/parashar.sachin/JaipurTripDay2?feat=directlink

आपको हमारा सफ़र कैसा लगा कृपया जरूर लिखे ....

Wednesday 23 December 2009

आप तो जानते ही हैं ...

तेलंगाना और एक नया राज्य बनने को तैयार है...गिनती शायद २९ हो जायेगी. ..और इसी तरह चलता रहा तो २०१५ तक ३ नए राज्य और बनकर तैयार हो जायेंगे ...
तब गिनती होगी ३० के पार...मतलब हमारा जो नारा है " अनेकता मे एकता का वो और मजबूत होगा ...आखिर हर दुसरे रोज़ हम आपस से अलग जो हो रहे हैं..

निसंदेह ये काम अगर सही सोच के साथ हो तो फायदेमंद है पर अगर राजनीति के नाम पर हो तो फिर देश का बंटाधार होना निश्चित है. सारे राज्य धीरे धीरे गरीब होते जायेंगे क्योंकि हमारे देश मे अब और ज्यादा नेता अमीर होते जायेंगे. ज्यादा प्रदेश होंगे केंद्रीय सरकार का बजट भी हर राज्य के लिए कम होगा....पर ये सोचिये हमारे मंत्रियो का प्रतिशत बजट कौन कम करेगा...और अगर वो कम नहीं हो सकता तो नुक्सान तो जनता को ही होना है... पर फिर वो ही पुरानी बात आगे आ जाती है की जनता की सोचता ही कौन है ...अगर आज कांग्रेस के शासन काल मे तेलंगाना बना है तो भविष्य मे इसका फायदा तो कांग्रेस को ही होना है...ये तो रायल्टी देनेवाला प्रदेश बन जाएगा...इसी तरह हर राज्य के साथ होगा.. और भला अंत मे नेता लोगो का ही होना है.... आप तो जानते ही हैं जनता की सोचता ही कौन है...

आप ही अब अपने बारे मे सोचिये ...१०० -१०० रूपये देकर १५०००-२०००० लोगो को लेकर धरने लगाओ और १-२ साल के अन्दर ही आपके लिए एक नया राज्य तैयार ...कमाल की राजनीति है ..इतना बूम तो आजकल राजनीती और मीडिया को छोड़ कर किसी और इंडस्ट्री मे नज़र नहीं आता मुझे...

इसके पीछे काफी बड़ा हाथ तो प्रिंट मीडिया और न्यूज़ चैनल का भी है ...पर हम उनकी बुराई कर नहीं सकते ....विडम्बना ये है की उसके लिए भी हमें मीडिया का ही सहारा लेना पड़ेगा ...सो ले देकर भड़ास नेता लोगो पर ही निकल लेते है लोग..मीडिया हलके से बाजू कट लेता है दुसरे मुद्दे की और...

हिंदुस्तान जिंदाबाद रहेगा..नेता हमेशा जिंदाबाद रहेंगे...आप तो जानते ही है जनता की सोचता ही कौन है..

Friday 1 May 2009

Examination system - A Question: Part 1

It all starts at the tender age of 5 or 6 years when a student/kid enters in the classroom for grade 1. After that, there is a span of 15-16 years which the student undergoes with the same monotonous life of class tests, unit tests, yearly examinations and also other than this … projects, homework presentations add only the anxiety and boredom to his/her life.
You must be thinking what rubbish I am writing here… This system has produced the great students who become doctors, Engineers, Lawyers, Reporters or even Politicians. Then what makes me think to raise a question over this ongoing process. Actually what we are watching is only the positive part of this system. We always make records for the successful students of every school, college, university, but have we ever taken any records into consideration for the students who are not so successful after their studies.
For example out of a class of 50, On an average only 5-6 students manage to be above 90%, 10-15 manage to between 80-90%, around 15 in between 70-80% and around 20 are below 65%. This percentage goes on decreasing once these students cross the board examinations. You can always find little more addition to the lower percentage groups. Are all these students that bad or all the high scorers are great enough to do everything better than the Low scorers.
Actually as per my understanding, the answer is certainly NO. What I feel is, these examinations are not the true evaluation of a student’s knowledge. We all know now days actually how difficult it remains to clear any examination… Apart from some good entrance exams; anybody can clear any exam of university level or school level with only 4-5 days of preparation. This means that these examinations are not helpful in terms of knowledge. Securing good marks is the only way which has remained to be achieved, not the knowledge. You can go through the whole material a week before the exams, mug up the contents and can easily secure the higher ranks. But you cannot acquire the true concepts and knowledge for which that subject has been introduced in to particular stream. There is no interest left in students to go in to deep research about the subjects, to explore the subject specified to them. For example an Electrical Engineering student knows that he doesn’t require being great with the heavy machines concepts as he can easily get the job in IT with good marks. So what he does is do short term courses for Electrical content , clears the exams and got selected into IT field through campus selection. So what all he requires from his or her degree is just good marks not the Knowledge.
In the end few Questions arises are

How can we generate the Interest in the students for their respective fields?
And
Can low scorers be benefited more with any other examination system?
To be continued……….
Do you have any solutions………….Please provide your views
.

Tuesday 21 April 2009

अंधों मे काना राजा ........

सरकार पक्ष : विपक्ष ने अपने समय मे ये सब गलत काम किये थे. उनके समय मैं इतना आतंकवाद फैला, इतने दंगे हुए, इतनी राजनीति खेली गई, ये मस्जिद टूटी ये मंदिर टूटे...इतने अत्याचार हुए...और भी कई मुद्दे रोज़ सुन ने मैं आ रहे हैं

विपक्ष पक्ष :ये सरकार बदलनी होगी ..इस सरकार के कार्यकाल मे इतने नुक्सान हुए, इतनी महंगाई बढ़ी, इतनी बेरोज़गारी बढ़ी, इतने दंगे ,इतनी लडाई यही सब, घुमा फिरा कर वोही आरोप....


इस आरोप प्रत्यारोप की राजनीति मे कोई भी पार्टी इस बात पर कम ध्यान दे रही की जनता तक ये बात पहुंचे की आखिर जनता उन्हें वोट क्यों करे , बल्कि प्रचार इस बात के लिए ज्यादा है की दूसरी पार्टी को वोट क्यों न करे.... ....

आप टीवी खोलेंगे तो ये देखेंगे...अखबार उठाइये तो ये पढने को मिलेगा....रेडियो सुनो तो ये सुन ने को मिलेगा...और अगर ये सब छोड़ कर ४ लोगो के साथ बैठ भी जाओ तो भी यही सब डिस्कशन....

क्या ये लोग आम आदमी को इतना नादान समझते हैं की उसे बिलकुल भी समझ नहीं की उसके लिए क्या मुनाफे का सौदा है.....क्या उन्हें नहीं पता की उनके महौल्ले ,शहर, जिले ,प्रदेश मे कौन नेता काम कर रहा है....और कैसा काम कर रहा है...हमारे देश मैं जितने भी वोट डाले जाते है...उसमे से कितने प्रभावित हो कर डाले जाते है...कहना मुश्किल होगा पर हाँ कुछ प्रतिशत तो जरूर होगा....

इस बार तो अगर चुनावी जंग निजी न्यूज़ चैनल्स पर शुरू हो गई है....सभी पार्टी ने एक एक चैनल पकड़ लिया ...और अपने गुणगान करवाने शुरू कर दिए....वेबसाइट बनवा डाली...वेबसाइट का प्रचार करवा डाला कि किसकी वेबसाइट सबसे अच्छी है टेक्नोलॉजी के मामले मे ....भला ऐसा करने से वो जिस वर्ग को लुभाने की कोशिश कर रहे है...वो वर्ग नादान तो नहीं....उसे नहीं पता क्या इन्फ्लेशन और बेरोज़गारी जैसे समस्याए क्यों है और इनसे कैसे निदान मिल साकता है...और किसने क्या कदम उठाये है....वैसे ये वर्ग वोट डालता भी या नहीं.....पता नहीं....

वोट कि राजनीति से जो कोलाहल आजकल देश मैं बना हुआ है, वो शायद ही कभी खत्म हो...और देश शायद ही उबर सके इस अभिशाप से...रोज़ नयी जातियाँ बन रही ...नए आरक्षण दिए जा रहे है, बिना जाने कि जरूरत है भी उन्हें या नहीं....बस वोट आने चाहिए...और तो और पुरानी जो हैं उनको भी खुश रखना है .....

हमारे देश कि सभी पार्टियां शायद ही देश को सँभालने के लिए सत्ता मे आना चाहती है...वो चाहती है मेरा वोट बैंक सालामत रहे बस काफी है...देश तो संभलता रहेगा ...जैसा चल रहा है...चलता ही रहेगा....
इन सारी चीजों को देखते हुए वोट डालने का मन तो बिलकुल नहीं करता ...पर जानता हूँ मे नहीं डालूँगा तो नुक्सान न डालने से ज्यादा होगा....तो इन्हें साब वोट कि राजनीति मे अंधी पार्टियों मे से किसी एक तो वोट डालना ही होगा...जो पूरा अँधा न होकर काना ही हो.....

आप लोगो को मेरे विचार कैसे लगे कृपया बताने की कृपा करे...

Wednesday 4 March 2009

तन्हाई का आलम ...कुछ इस कदर

कोई तन्हा है इस कदर  
समंदर मे की जहाज की तरह..  

आवारा फिर रहा है वो
वादियों मैं आवाज़ की तरह...

गर पूरी हो गई होती तलाश उसकी भी
तो छुपा लेता वो भी खुद को....
अनकहे अल्फाज़ की तरह ..


Sachindra Kumar

Friday 20 February 2009

प्यार बड़ा या पैसा

कभी पैसा मिलता है तो किसी का साथ नही मिलता
कभी साथ मिलता है तो..साथ चलने के लिए पैसा नही मिलता
दोनो एक साथ हो ...कुछ वक्त ऐसा नही मिलता
ये वक्त का पत्थर है ...सिर्फ़ सोचते रहने से हिलाय नही हिलता ...
दुःख अगर सामने है .. तो सुख वही कहीं पीछे होगा
वक्त कितना ख़राब हो...वक्त है आख़िर ज्यादा देर नही टिकता .
सुख और दुःख मैं बस अन्तर इतना है..
की अगर कोशिश न हो तो..सुख ढूंढे से भी नही मिलता
जरूरत क्या है ...ये पता होना जरूरी है
अगर परवाह नही तो तो ग़लत आप है...
प्यार या पैसा ..फ़ैसला आपका है
वैसे कमी किसी की भी हो ...तमन्ना तो दोनों के बिना अधूरी है..
कहने को तो कहते है सिर्फ़ प्यार बहुत है जीने के लिए ...
पर अगर पजामा फटा हो तो...तो सिर्फ़ प्यार से तो नही सिलता ...
दोनो एक साथ हो ...कुछ वक्त ऐसा नही मिलता
ये वक्त का पत्थर है ...सिर्फ़ सोचते रहने से हिलाय नही हिलता ..

सचिन्द्र कुमार

Sunday 8 February 2009

एक और रविवार ...थोड़ा अच्छा और थोड़ा बेकार....

एक और रविवार ...थोड़ा अच्छा और थोड़ा बेकार.... आज तो पिछले १ हफ्ते मैं दूसरा ऐसा काम करने की इच्छा पूरी हुई है जिससे मैं काफ़ी सालो से वंचित था..पिछले हफ्ते ही मैंने बसंत पंचमी बनाई हरिद्वार में लगभग 5 साल बाद और इस बार पूरी ki मेरी क्रिकेट मैच खेलने की तमन्ना .... लगभाग ५ या उस से ज्यादा समय हो चुका था एक अच्छी जगह पर क्रिकेट खेले ...किसी स्टेडियम में पूरी व्हाइट किट पहने हुए अरसा बीत गया था ...आज अचानक से कुछ समीकरण इस तरह बने की एक ये इच्छा भी पूरी हो गई... दरअसल मुझे पिछले सोमवार को ही पता लग गया था की शायद मुझे खेलने का मौका मिले. मैं तो उसी वक्त से बहुत अच्छा अच्छा सा महसूस कर रहा था सिर्फ ग्राउंड पर जाने के बारे मैं सोच कर ही , आख़िर इस बार तो मीनल भी गुडगाँव मैं नही थी ...हलाँकि इस जगह मैं थोड़ा स्वार्थी भी हो गया था :) जो अपनी इस इच्छा को जयादा महत्व दिया बजाय इसके की मैं हरिद्वार चला जाता .... कल रात से वो ही पुरानी बचैनी सी थी जैसे की 10 या १२ क्लास के समय होती थी...हालाँकि उस वक्त मम्मी का डर अन्तिम समय तक लगा रहता था की अनुमति मिलेगी भी या नही...इस बार मम्मी और मीनल (my wife) दोनों से मिल गई थी फ़ोन पर ही खेलने के लिए ...और मैं तैयार हो गया आज सुबह १२:३० के मैच के लिए. रविवार ८ फ़रवरी,२००९ १०:३० ऐ .म मैं अपने दोस्त रोहित के हॉस्टल से निकला ग्राउंड के लिए ...पहुंचना था म.डी.सी स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स, अशोक विहार. उस से पहले व्हाइट किट का भी इंतजाम करना था ...तो उसकी खोज मैं पहुँचा पास ही के विशाल मेगा मार्ट, एक लोअर खरीद कर मैं आगे बढ़ा ...बस और मेट्रो की सहायता से मैंने दूरी लगभग ४५ min पूरी की ...भला हो मेट्रो का जो इतनी जल्दी सम्भव हो सका पहुंचना... रास्ते भर इस्सी बात से इतना उत्साहित था की मैं ग्राउंड पर जा रहा हूँ ...ये सोचा भी नही की खेलने का मौका मिलेगा भी या नही....क्युओंकी मैं पहली बार जा रहा था...बिना किसी पहचान के ...किसी को ये तक नही पता था की मैं किस पक्ष मैं दक्ष हूँ ...गेंदबाजी या बल्लेबाजी...छोडिये ये तो मेरी प्राथमिकता थी नही...पहली प्राथमिकता तो ग्राउंड समय पर पहुंचा थी...फिर हो सका तो कम से कम प्रक्टिस का पार्ट तो बन ही जाऊं किसी तरह...अगला लक्ष्य था प्रक्टिस मैं इम्प्रेशन ज़माने का ...क्युओंकी वोही एक मौका था का जिसमे मैं बता सकता था की मेरी उपयोगिता क्या है ....और ये सब भी अच्छा रहा तो किसी तरह अन्तिम ग्यारह मैं पहुँचने का ....बस इसके बाद कुछ नही सोचा क्युओंकी मुझे पता था यही सबसे मुश्किल होगा ...आख़िर टीम मेरे ऑफिस के सभी ऊँचे ओहदे और बॉस लोग थे ...जो कम से कम मेरी वजह से तो बाहर नही बठेंगे ....वह करीब १८ लोग आए हुए थे हमारी तरफ़ से.... यही सब सोचता सोचता मैं ठीक १२:३० पर स्टेडियम पहुँच गया और जैसा सोचा था सबसे पहले...अभी तो पिछला मैच ही खेला जा रहा था दूसरी टीम का.., १५ इन तक कोई नही दिखा तो मुझे लगा कही रद्द तो नही हो गया match..खैर धीरे धीरे करके हमारे सदस्यों का आना शुरू हुआ तो मुझे ये विशवास हो गया की अपना मैच भी होगा कम से कम ..... एक, २, करते करते चंद मिनटों मैं ही सभी खिलाडी आ gaye .... बड़ा अजीब सा लग रहा था ...सब एक दुसरे को जानते थे और मैं एक नए खिलाड़ी की तरह अलग से खड़ा देख रहा था...fir भी खुश की चलो कोई नही हूँ तो इन्ही के साथ... मेरे कप्तान ने मुझे देखा और पुछा क्या करते हो...बोलिंग या बैटिंग ...मैंने दबे शब्दों मैं कहा बोलिंग ...क्युओंकी उसमे number आने के चांस ज्यादा रहते हैं हमेशा क्रिकेट मैं अगर नए हो आप तो.....हुआ भी वैसा ही...उसने मेरे हाथ मैं गेंद दे दी और कहा आ जाओ हम थोडी प्रक्टिस करेंगे ....तब तक मैं अपनी किट change और थोड़ा वार्मअप कर चुका था....तो मैं हलकी फुल्की गेंदबाजी के लिए तैयार था ....और मेरी गेंद फेकने की इच्छा पूरी होने वाली थी :) ...पहली गेंद उसको जब फेंकी तो उसने इतनी ज़ोर से मारा की मन किया अगली बल मुँह पर मार दूँ :) :) ...सही मैं अगर प्रक्टिस नेट्स नही होते तो पता नही ball कहाँ जाकर गिरती ....:) :) मन ही मन २ गालियाँ दी और ख़ुद मैं विश्वास रखते हुए दूसरी फेंकी...पर नतीजा फिर वोही ..हालाँकि इस बार वो इतनी ज़ोर से नही मार पाया ...मैं थोड़ा खुश हुआ चलो कुछ बेटर है ....उसके बाद तो मैं भी थोड़े रंग मैं आने लगा ...कुछ अच्छी गेंदे भी डाली मैंने ....पर फिर मुझे लगा शायद कमी रह गई हो.....और १० इन के बाद वो बोला चलो टॉस का टाइम हो गया और अन्तिम ग्यारह भी बताने है अभी.....मेरी उत्सुकता अचानक से बढ़ गई ...अब क्या होगा....मैं अचानक से अपने विचारो से ज्यादा की उम्मीद करने लगा ....मुझे लगा की यार अब टीम नही लिया गया तो बहुत बुरा लगेगा और...करने लगा प्रार्थना मन ही मन.....उसी वक्त मुझे आवाज़ सुने दी...और विश्वास हो गया की हनुमान जी ने सुन ली....और उसके शब्द थे की मैं टीम का नया सदस्य हूँ...१० मिनट काम कर गए.....और मैच के लिए मैं सेलेक्ट हो गया....और मैच शुरू हो गया ... मैच शुरू हुआ ...हमारी गेंदबाजी थी....हम सब कप्तान के साथ बीच मैदान मैं थे जहाँ से वो निर्देश दे रहा था सबकी स्थिति की...मुझे अपनी का अंदेशा था ...कीपर के पीछे(fine leg)...बस्ती लेवल से लेकर इंडिया लेवल ...हर नया खिलाड़ी wahin खड़ा किया जाता है...:) :) तो मैंने बिना कहे ही लगभग उसी तरफ़ कदम उठाने शुरू कर दिए थे...और mujhe आवाज़ भी आगई की सचिन्द्र वहां पीछे पहुँच जाओ....उसके बाद जो हुआ वो सिर्फ़ एक लाइन मैं ख़तम हो गया.... जी हाँ ...मैं २५ ओवेर्स तक वोही खड़ा रहा और...गेंदबाजी का तो मौका ही नही मिला....बहुत निराशा मिली ...........पर आशा से बहुत अधिक तो मुझे मिल ही चुका था.... पहली इनिंग ख़तम हुई तो स्कोर था १८५, २५ ओवेर्स मैं....बहुत आसान सा लग रहा था ग्राउंड को देखते हुए ....बलेबाजी की तो मुझे कोई उम्मीद ही नज़र नही आती थी.....अच्छा हुआ रखी भी नही...क्युओंकी उसी वक्त मुझे पता चला मेरी जगह कोई और बल्लेबाज़ी करेगा ...मैं तो सुपर sub की तरह था ...वो नियम जो बंद कर दिया गया है....पर यहाँ था ताकि १२ खिलाडी खेल सके टीम मैं......चलो वैसे भी मुझे उम्मीद नही थी क्योंकि देखने मैं और बातो के आताम्विश्वास से सभी मुझे सहवाग और तेंदुलकर नज़र आ रहे थे.....ऐसा लग रहा था की कहीं १५ ओवर मैं न ख़तम कर दे मैच...... सची सोचा था मैंने ....सभी सहवाग और तेंदुलकर की तरह ही थे ...पर अफसोस उस दिन वाले जब वो लाइन लगा कर आते है वापस पैवेलियन मैं....जैसा वो श्रीलंका मैं कर रहे थे वैसा hi हमारी team के सहवाग और युवराज कर रहे थे ....सभी १५ ओवर मैं बाहर आ गए....क्या कमाल का तुक्का था मैच वाकई १५ ओवर मैं ही ख़तम हो गया...बस नतीजा जरा अलग था... अपन ने तो अच्छा सा लंच किया अपनी टीम की बैटिंग के दौरान ...खूब चाय पानी पिया...क्युओंकी कुछ था ही नही अब तो करने के लिए ....मैच के बाद कोच की झाड़ सुनने मैं अपन सामने नही आए ...क्युओंकी कुछ किया ही नही मैच मैं सिवाय फिलेदिंग के और उसमे भी २ बार गेंद आई मेरी तरफ़ वो पकड़ कर दे दी ठीक ठाक तरीके से .....शाम को एक ऑफिस की गाड़ी ने घर छोड़ दिया ...और दिनचर्या ख़तम बाहर की....और खाना बनने की टेंशन शुरू.....फिलहाल थकान तो हो ही गई थी ...आखिर इतनी देर खड़ा रहना मजाक थोड़े ही है....नए खिलाडी तक तो पानी बोत्त्ले भी नही आ pati ड्रिंक्स मैं....ज्यादा नही अपने प्रिय फटाफट खाना बनाया-पुलाव और खाया है अभी.......कल सुबह जाते ही ऑफिस मैं झाड़ पड़ने वाली है बॉस की, हैं कुछ पिछले हफ्ते की गलतियां...पर कोई बात नही.....मैं तैयार हूँ आजके इस हसीन सन्डे के बाद.

हालाँकि बेकार कुछ नही था पर क्या करू...इंसान हूँ न ...असंतोष की भावना तो मुझमे भी है ...शायद इसलिए थोड़ा सा अच्छा और थोड़ा bekaar  

.......
कैसा लगा आपको आज का अनुभव ....

Monday 5 January 2009

ज़िन्दगी - एक दौड़

गर्दिश मे सितारे मेरे सही,
पर उम्मीद अभी भी बाकी है.

हार न मानूगा हरगिज़ मैं,
आसार जीत के अभी बाकी है.

जाम-ऐ-रौशनी दिखलाएगी,
ये रात चांदनी ख़ुद ही साकी है.

क्या हुआ यार जो आज गिरे हम,
पर ये दौड़ अभी भी बाकी है।

 
................... सचिन्द्र कुमार

Thursday 1 January 2009

शुभ समापन २००८

आने वाली खुशियों को महसूस का रहा हूँ

मैं भी आज कुछ लिखने की कोशिश कर रहा हूँ

एक सुनहरा साल बीतने को है ज़िन्दगी का...

इस साल के हसीं लम्हों को समेटने की कोशिश कर रहा हूँ

किसी और देश की जमीं पर थे जब इस वर्ष के शुरूआती दिन आए...

अपनों की कमी का दुख हमें जा रहा था सताए,

फिर भी जिए शान से सभी मुशिकिलो को भुलाए ....

जिन पर नाज़ है आज हमें...वो रिश्ते हैं इसी साल बनाए...

कुछ ने हमें प्यार दिया ...कुछ ने दुत्कार भी दिया,

कुछ ने जीना सिखाया ...कुछ ने ज़िन्दगी को आकार दिया.

इसी सीखने सिखाने मे मैं बहुत कुछ सीख गया...

पता भी न चला वक्त का... और एक साल बीत गया.
समापन २००८...

आने वाले वर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाये
सचिन्द्र कुमार