Sunday 22 September 2013

नारी के अन्दर छुपे सभी गुण और शक्तियों को चंद शब्दों में प्रस्तुत करने का प्रयास कर रहा हूँ ... हाँलाकि चंद पंक्तियों में इसका वर्णन संभव नहीं है किंतु फिर भी एक छोटा सा प्रयास है ये ..

....आशा .... 

मुझको भी खुद से आशा है 
मैं भी आगे बढ़ सकती हूँ 
छोटा सा एक प्रयास जो हो तो, 
नभ की उंचाई छू सकती हूँ

ये जो सामाजिक भेदभाव है 
ये मुझ पर उपहास है
मैं भी हर काम में सक्षम हूँ
मैं भी जीत की परिभाषा हूँ।

मैं मद्धम हवा सी चल सकती हूँ,
शीतल नदी सी बह सकती हूँ,
आए जो कोई विपत्ति तो
तप्त ज्वाला सी जला सकती हूँ।

मुझसे ना ऐसे भेद करो
न शिक्षा से मेरा विच्छेद करो
मैंने परिवार चलाये हैं,
देश भी मैं चला सकती हूँ।

मुझको भी खुद से आशा है
मैं भी आगे बढ़ सकती हूँ
छोटा सा एक प्रयास जो हो तो
नभ की उंचाई छू सकती हूँ।

.....सचिन्द्र कुमार