Friday 15 June 2012

तेरे जाने पर...

तेरे जाने पर...

शाम को जब दरवाज़े पर,
दफ्तर से आकर दस्तक दी..
कोई हलचल ना महसूस हुई
आहट ना दी कोई सुनाई..

थका हुआ सर झुका जो नीचे
कुण्डी पर लटका था ताला..
फिर से ये अहसास हुआ की,
अब से शाम ना होगी बेहतर,
कैसा लगेगा ये सोचा,
अब जब तुम ना होगी घर पर..

सच बोलू तो तेरी याद,
एक दफ्फ़ा और भी हमको आई..
जब अन्दर आने पर हमने
खुद ही शाम की चाय बनाई..

शाम को जब दरवाज़े पर,
दफ्तर से आकर दस्तक दी..
कोई हलचल ना महसूस हुई
आहट ना दी कोई सुनाई

.....सचिन्द्र कुमार .......

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