Thursday 9 December 2010

ज़िन्दगी और ग़फलत

गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती।
ये ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत ना होती।
सच की कडवाहट का अंदाजा होता
एक अधूरी सी जीत की , कभी ख़ुशी ना होती।

गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती
ये ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत ना होती।

अपनी चाल चलन और सोच
हर दफ्फ़ा ना होती बेहतर
कभी खुद को भी तोला होता
कहीं किसी से कमतर
तभी समझ ये आता, क्या हो सकता था जो हुआ नहीं
अहसास ये होता, क्या पा सकते थे जो मिला नहीं...
अपने जीवन में भी, कुछ बाकी हसरत होती
गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती...

सोच रहा हूँ क्या करें...
कितनी रखे , कितनी रहने दें ...
अब समझे, शायद ये ज़िन्दगी ही ना होती॥
गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती...

सचिन्द्र कुमार