Wednesday 13 March 2013

......स्कूल का एक दिन...... 

सुबह के ८ बजे खुली नींद 
घडी देखकर ही खुद पर चिल्लाया 

आधे घंटे में होना है तैयार 
ये सोच सोच कुछ पल घबराया 

ठीक आधे घंटे में दोस्त दरवाज़े पर खड़ा था 
आधा परांठा हाथ में आधा प्लेट में पड़ा था 

जैसे तैसे घर से निकले हम
आज तो जान लगा देंगे
जैसा भी हो पर्चा  आज का ..हम चुटकी में निपटा देंगे

रास्ते में हमने इतना इतिहास दोहराया था
मानो कुछ भूल गए तो नया इतिहास बना बना देंगे

जाते ही स्कूल लगा यूँ हमको झटका
पर्चा था हिंदी का पर इतिहास का मारा था रट्टा

छुप गए जाकर साइकिल स्टैंड पर
मांग के दोस्त की कॉपी
पर समझ आ  गया था ..
इतना पढना न होगा काफी

पर फिर भी सोच लिया था दोनों ने
आज तो जान लगा देंगे
जैसा भी हो पर्चा  आज का ..हम चुटकी में निपटा देंगे

थोड़ी सी मेहनत , थोड़ी सी किस्मत
आखिर में हाँ रंग लायी
कुछ अच्छे कर्मो का ही फल होगा
जो उस दिन कलम थी चल पायी

कॉलर ताने बहार निकले
दोनों एक दूजे को ताकते हुए
मालूम था जो लिखा है अन्दर
लिखा था इधर उधर झांकते हुए

भुला दिया घर जाते हुए सब बातो को
हावी न होने दिया हमने, मस्ती पर जज्बातों को
रास्ते में वो ठेली पर से मूंगफली उठा कर भागे हम
पर चैन उतर गयी साइकिल की ..ऐसे थे अभागे हम

आज वो दिन जब याद आया तो, फिर से चेहरा खिल गया
इस बार घर की सफाई में, स्कूल का बस्ता मिल गया

....सचिन्द्र कुमार

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