Thursday 7 February 2013


पिछले दिनों मैंने कुछ हास्य कविता के रूप में लिखने की कोशिश करी थी, एक सवाल आया तब मन  में और कुछ सोचा तो जवाब भी खुद निकल आया। उसी सवाल जवाब कुछ पंक्तियाँ  हाज़िर हैं 

जाने कवी लोगो की बीवी और नेताओ से क्या जमती है

की आधे से ज्यादा हास्य कविताएं इन दोनों पर ही बनती है


थोड़ी सी नेताओ की बुराई कर डालो

कुछ कमी रह जाए तो बीवियों की आदत निचौड़ डालो

मजे दिलाओ श्रोताओ को इनके तौर तरीकों के

थोडा लगा दो तड़का पतियों के फूटे नसीबो के।

बात है सच लोगो के मन को, ऐसी ही बाते रमती है

शायद इसीलिए हास्य कविताये, इन दोनों पर ही बनती है


कोई बात नहीं है ऐसी जो इन दोनों में एक हो

बीवी एक ही काफी है ..नेता भले अनेक हो

एकलौती बीवी ही अपनी हमको, नाको चने चबवाती है

और नेताओ की टोली दोस्तों मिल के नोट लुटाती है

बात मजे की ऐसी है की यही हास्य कवियों की टोली

अपने लिए एक बीवी और कई नेताओ को चुनती है


शायद इसीलिए हास्य कविताये इन दोनों पर ही बनती है


.....सचिन्द्र कुमार

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