Monday 3 January 2011

नववर्ष की शुभकामनाये

कोई बताये क्या लिखें,

क्या है नया जो हम कहें।

यूँ ही ना लिख दे कुछ बेमतलब,

आप कहेंगे हम क्यूँ सहें।

यूँ तो लिखने मैं चला था कुछ हँसते खेलते पल,

थोडा लिखा तो अफ़सोस हुआ की क्यूँ बीत गए वो प्यारे पल,

सब कुछ ही तो अच्छा था हमेशा की तरह दिल के कोने में,

गुलाटियां सी मारता हुआ एक मासूम सा बच्चा था

खुश था वो नये साल को लेकर।

उत्साहित था मन में आने वाले ख्यालों को लेकर,

फिर से एक शुरुआत सी थी,

पर डर भी था की क्या होगा कल।

वो चला फिर भी एक हौसले के साथ, जो होगा देखा जायेगा

गर मेहनत रंग लायी तो परिणाम भी अच्छा ही होगा,

गुंजाइश ना थी किसी गफलत की अब के बरस,

मुकम्मल जहां के लिए ये मासूम ना जाए तरस।

किस्मत थी अच्छी जो पूरा हुआ लक्ष्य,

अब अंदाजा लगा सकता हूँ आने वाले साल का,

कौतुहल तो इस बार भी वैसा ही है,

मन में ख्याल भी वैसा ही है,

और क्या क्या हो सकता है

मन में सवाल पहले जैसा ही है।

अगले बरस फिर बताइयेगा हम क्या कहे

कुछ नया फिर से जो हम कहे

यूँ ही ना लिख दे हम कुछ बेमतलब

और आप ये कहे की ...हम क्यूँ सहे

सचिन्द्र कुमार

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