तेरे होंठो से छूकर निकली..सुनी जो ग़ज़ल
मैं जरा सा बहक गया था..अभी गया हूँ संभल
शब् में भी आते हैं अब तो..ख्वाब अच्छे भले...
शब् में भी आते हैं अब तो..ख्वाब अच्छे भले..
सुकून सा भी मिलने लगा है दिल को आजकल..
मुझे एक गम था..उन दूरीयों का जो भी थी दरमियान
वो हंस दिए तो दायरा भी मेरा गया है बदल
मैं जरा सा बहक गया था..अभी गया हूँ संभल
उन्हें भी इश्क था हमसे बस एक हिचक सी थी..
जरा यकीन सा हुआ उनको तो... डर गया था निकल
तेरे होंठो से छूकर निकली..सुनी जो ग़ज़ल
मैं जरा सा बहक गया था..अभी गया हूँ संभल
सचिन्द्र कुमार
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