Thursday 9 December 2010

ज़िन्दगी और ग़फलत

गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती।
ये ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत ना होती।
सच की कडवाहट का अंदाजा होता
एक अधूरी सी जीत की , कभी ख़ुशी ना होती।

गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती
ये ज़िन्दगी इतनी खूबसूरत ना होती।

अपनी चाल चलन और सोच
हर दफ्फ़ा ना होती बेहतर
कभी खुद को भी तोला होता
कहीं किसी से कमतर
तभी समझ ये आता, क्या हो सकता था जो हुआ नहीं
अहसास ये होता, क्या पा सकते थे जो मिला नहीं...
अपने जीवन में भी, कुछ बाकी हसरत होती
गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती...

सोच रहा हूँ क्या करें...
कितनी रखे , कितनी रहने दें ...
अब समझे, शायद ये ज़िन्दगी ही ना होती॥
गर हमें जरा सी ग़फलत ना होती...

सचिन्द्र कुमार

10 comments:

Rajee said...

Good one........"kavi babu" ......keep it up.

Unknown said...

Zindagi ki khoobsurati dekhne ka aur uski kimat samjhne ka ek naya nazariya hai aapke is vichar me..really impressing..

vishal said...

Bhai SUbhan allah...
Maasha Allah......

rohit said...

Superb, Awesome... keep going with some new thoughts on life.. Why don't u try in some newspapers for the column they have for Life & Culture..

Unknown said...

Awesome thought .. Sachin bhai .. Very well said ... Keep it up ..

123abc said...

bahut he shaandar mere dost... keep it up.

Barthwal said...

बहुत बढिया सचिन्द्र जी..जिंदगी को सम्झना आसान भी नही है बस कुछ अनुभव सीख जरुर दे जाते है

Richa T Parashar said...

You have switched on the best in you..!!

atul.. said...

WAh bhai WAH!!!

Unknown said...

Kamal hai!! Mere Ghalib